जहाँ चाह वहाँ राह

जहाँ चाह वहाँ राह

Bitan Sarkar, IXB (2019-20)

इंसान अपने जीवन में बहुत चीजों की आशा
करता है। पर हमेशा हम जो चाहते हैं, वह हमें प्राप्त नहीं होता है।अतः वे हमें आशाहत करते हैं पर कभी कभी हमे सीख भी देते हैं।

मेरे साथ भी एक बार , ऐसी घटना घटी है। मै अपने पड़ोस में रहने वाले एक मित्र के घर जा रहा था। उस दिन उसका जन्मदिन था । इसलिए
मैंने अपने सबसे अच्छे कपड़े एवं जूते पहने थे।
वर्षा का दिन था। इसलिए जब-तब बारिश हो रही थी।

दोपहर के एक बजे थे और मैं निकल पड़ा।
जाते-जाते एक जगह आई जहाँ पूरा का पूरा पानी जमा था। आस-पास से जाने की भी कोई जगह नहीं थी। मैं अपने नए जूतों को गिला नहीं करना चाहता था। मेरे पास और कोई जूता भी नहीं थे। इसलिए मैं सोचने लगा कि मैं क्या कर सकता हूँ।

तभी मेरे पास से एक मेढक कूदते हुए गुज़र गया और जमे पानी को भी पार कर गया ।यह देखकर मेरे दिमाग की बत्ती जल गई। मैंने अपने जूते खोले और पूरे जोर से एक लंबी छलांग मारकर पानी के उस तरफ़ पहुँचाने की पूरी कोशिश की। मुझे डर था कि कहीं मेरा निशाना चूक न जाए परंतु अंत में मैं सक्षम रहा।

फिर मैंने पास वाले एक पेड़ से एक
लंबी टहनी तोड़ी। फिर मैंने अपने पैंट को थोड़ा-सा ऊपर की ओर उठाया और टहनी के सहारे पानी की गहराई को मापते हुए उसे पार कर गया। पानी के उस तरफ़ पहुँचते ही मैंने अपने जूते पहन लिए और अपने दोस्त के घर की ओर चल दिया। मैं उस टहनी को भी अपने साथ ले गया कयोंकि मुझे पता था कि घर लौटते वक्त मुझे उसकी ज़रूरत पड़ेगी।

इस घटना से मुझे यह सीख मिली कि परिस्थिति हमेशा हमारा साथ नही देती है। हमें विपरीत परिस्थिति में न टूटकर सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। अगर हम ऐसा कर सकते हैं, तो हम अवश्य सफ़ल होंगे।

सपना

Disha Mukherjee, IX B (2019-20)

माता-पिता का ऋण

Jaibrato Bhowmick, X C (2019-20)

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