Disha Mukherjee, IX B (2019-20)
मेरे हाथों से बहुत खून निकल रहा है। एक ऊँगली का आधा हिस्सा कट गया है। सिर पर भी गहरी चोट आई हुई है, इसलिए हिल नहीं पा रही हूँ, पर कोई भी अब तक मेरे शरीर को लेने नहीं आया है। मैं अपने शरीर के पास ही बैठी हूँ, पर कोई मुझे देख नहीं पा रहा है!
कुछ घंटे पहले……….
हालाँकि मैं हर रोज ही ऑफिस से देर तक नहीं निकल पाती हूँ, मगर आज मेरे भाई का जन्मदिन है, यह मैं कैसे भूल सकती हूँ?
‘’तुझे बस स्टॉप तक छोड़ दूँ’’? दूर से मीरा की आवाज आई।
‘’नहीं, मैं चली जाऊँगी’’, कहते हुए मैं आगे की दुकान में घुस गई, जहाँ से मुझे अपने भाई के लिए उसकी पसंदीदा घड़ी खरीदनी थी।
घड़ी खरीदकर जब दुकान से बाहर निकली तो रास्ता बहुत सुनसान था। थोड़ी अजीब-सी बैचेनी थी मन में। बस स्टॉप तक पहुँचकर तो घबराहट और भी बढ़ गई क्योंकि आस-पास कोई दिख ही नहीं रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि शाम को सब कहाँ गायब हो गए हैं। तभी मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी और दूर से कुछ लोग आते दिखाई दिए जिनके हाथों में मशालें थीं और वे बड़ी ही क्रूरता से सब कुछ तोड़-फोड़ करते हुए आ रहे थे। मुझे कुछ डर-सा लगा, समझ में नहीं आ रहा था कि कौन हैं और ये सब क्यों कर रहे थे।
मैं जल्दी-से जाकर झाड़ियों के पीछे छुप गई। मैं बहुत डरी हुई थी क्योंकि इससे पहले मैंने कभी भी ऐसे दंगे नहीं देखे थे, मगर सुना था कि यह लोग किसी को नहीं छोड़ते। जब वे लोग मेरे सामने से गुज़र रहे थे तो मैं इतना घबरा रही थी कि मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वे लोग हर चीज़ को हटाकर देख रहे थे कि कहीं कोई छुपा न हो।
एक आदमी मेरी तरफ आने लगा। झाड़ियों के सामने एक ड्रम रखा हुआ था जिसे उसने लात मारकर हटा दिया, उसके हाथ में एक डंडा था जिससे वह छोटे-छोटे पौधों को हटाकर आगे बढ़ रहा था।
‘’कोई है तो बाहर आ, देखता हूँ कोई कैसे बचता है!’’ कहते हुए वह आदमी अपना डंडा मेरी झाड़ी की ओर बढ़ा ही रहा था कि तभी किसी ने कहा, ‘’छोड़ दे, उधर कोई नहीं होगा।‘’
जब वह आदमी डंडा लिए हुए मेरी तरफ बढ़ रहा था, तो एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कि मैं नहीं बच पाऊँगी, पर जब वे लोग जाने लगे, तो मुझे थोड़ी राहत मिली। मैंने सोचा कि इनके जाते ही मैं यहाँ से निकल जाऊँगी और किसी तरह घर पहुँच जाऊँगी। वे लोग जा रहे थे कि तभी मेरा फोन जोर से बज उठा! मैं इतना डर गई कि मैं जोर से चिल्ला उठी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। उन लोगों को पता चल गया था कि वहाँ कोई है।
‘’जो भी है निकल आ वरना!’’, उनमें से एक आदमी ने कहा।
मैंने अपना फोन तो बंद कर दिया था मगर उन गुंडों को पता चल गया था कि आवाज़ झाड़ियों की तरफ से ही आई थी। वे मेरी ही तरफ बढ़ने लगे। उनके हाथों में चाकू, डंडे, मशालें तथा और भी कई तरह के अस्त्र थे। मुझे लगा कि एक बार अगर मैं उनके हाथ लग गई तो बच नहीं पाऊँगी, तो बेहतर यही होगा कि मैं पहले ही भाग जाऊँ, इसलिए मैंने भगवान का नाम लिया और उठकर जोर से भागने लगी। जैसे-ही उन गुंडों ने मुझे देखा, वे चिल्लाए और मेरे पीछे भागने लगे।
मैं जी-जान लगाकर भाग रही थी। मेरे पैर थक रहे थे मगर मुझे पता था कि यह थकने का समय नहीं है। आगे एक मोड़ पर मैं जैसे ही बाँई तरफ मुड़ी, मैं किसी से टकराई और नीचे गिर गई। जब सिर उठाकर देखा तो वह भी दंगे में शामिल एक और गुंडा था। गिर जाने से मेरे हाथ में चोट आ गई थी, तो मैं जल्दी-से न उठा सकी। तब तक बाकी के गुंडे जो मेरे पीछे थे, वे भी आ पहुँचे और सबने मिलकर मुझे घेर लिया। मैं किसी तरह उठी और बोली,’ कृपया मुझे जाने दो। मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा, मुझे छोड़ दो।’
मैं ऐसे ही रो-रोकर मिन्नतें करने लगी और वे हँसने लगे।
उनमें से एक ने कहा, ‘’बेवकूफ लड़की! हमें धोखा देकर भागेगी, देख अब हम तेरा क्या हाल करते हैं!’’
एक आदमी ने डंडे से जोर से मेरे सिर पर वार किया, मैं नीचे गर गई पर बेहोश नहीं हुई। मुझे कमज़ोर होता देख वे सब एक साथ हथियारों से मुझ पर हमला करने लगे। मैं चिल्लाती रही, रोती रही, मगर किसी के मन में दया नहीं आई।
अब जब मैं अपने निर्जीव शरीर को पास पड़ा हुआ देख रही हूँ तो मन में बस एक ही ख्याल आता है – क्या मनुष्यों के मन में आज भी इंसानियत है? उदारता, स्नेह, क्षमाभाव, सहृदयता – इन्हीं गुणों के कारण तो मनुष्य पशुओं से श्रेष्ठ है, परंतु वर्तमान समय में दंगे और मार-पीट के रूप में मनुष्य ही मानव जाति का विनाशक बन रहा है।
मेरी आखिरी इच्छा यही रहेगी कि मेरे बैग में रखी घड़ी पाकर मेरा भाई खुश हो और एक अजीब-सा सोच मन में चल रही है। घड़ी का कितना महत्व है! काल हमको कहाँ -कहाँ ले जाता है, जो मार रहे हैं वे भी काल के वश में हैं और जो प्यार कर रहे हैं वे भी काल के वश में हैं। इस काल का यानि समय पर नियंत्रण क्या इंसान के हाथ में है? अगर है तो, महाकाल हमको कहाँ ले चल रहे हैं!